गज़ल
इतना ना इतराया करो
कुछ बातें मान भी जाया करो
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मुलाज़िम नहीं हम आशिक हैं
थोड़ी इज्ज़त से पेश आया करो
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काँटों की चिंता छोड़ के तुम
आँगन में फूल उगाया करो
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दिल में छुपाकर गम अपने
लोगों का जी बहलाया करो
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दुनिया क्या समझेगी कीमत
ना आँख से अश्क बहाया करो
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चाँद नहीं निकला तो क्या
राहों में दिए जलाया करो
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।