मोची और बौने
मोची एक था रोज बनाता,
जूते सुंदर और मजबूत,
पर पैसे कम मिलते थे तो,
बनते जूते जोड़ी एक.
मोची और उसकी पत्नी,
रहते थे दूकान के पीछे,
एक शाम वह चमड़ा काटकर,
चला गया घर, रख वह नीचे.
अगले दिन दुकान खोली तो,
सुंदर जूते थे तैयार,
दोनों थे हैरान किए थे,
किसने ऐसे जूते तैयार!
तभी दुकान पर एक आदमी,
जूते लेने को था आया,
सुंदर और मजबूत देखकर,
दुगुना दाम उसे पकड़ाया.
अगले दिन फिर दो जूतों का,
चमड़ा काट रखा मोची ने,
सुबह दो जूते थे तैयार और
दाम अधिक पाया मोची ने.
अब तो चमड़ा बहुत-सा लाकर,
जूते काटे दोनों ने,
अगले दिन सब ही तैयार थे,
खूब पाया धन दोनों ने.
एक बार मोची ने पोछा,
जूते कौन बना जाता है?
पत्नी बोली, आज देखेंगे,
कौन ये भाग्य जगाता है!
खिड़की से वे रहे देखते,
बौने दो थे नाचते आए,
झटपट जूते बना-बनूकर,
नाचते-नाचते चले गए वे.
पत्नी बोली, ”इन बौनों ने,
मदद हमारी बहुत है की जी,
दीपावली पर सुंदर कपड़े,
इनके लिए बनाऊंगी”.
”मैं बनाऊंगा छोटे जूते”,
मोची भी तब बोल पड़ा,
कपड़े-जूते रखके शाम को,
मोची देखता रहा खड़ा.
रात हुई और बौने आए,
देखा चमड़ा कटा नहीं,
नन्हे-नन्हे जो कपड़े-जूते,
रखे उन पर नजर पड़ी.
कपड़े-जूते पहन मजे से,
हंसते-नाचते चले गए,
मोती और पत्नी उसकी,
देख उन्हें खुश बहुत हुए.
लीला बहन, मोची और बौनों की सुन्दर बाल कविता है .
एक दूसरे की मदद से सबके काम संवर जाते हैं. बौनों ने मोची की मदद की मोची ने बौनों की, दोनों के जीवन में खुशहाली आ गई.