सतरंगी आकांक्षा
एक दिन सरिता की प्रधानाचार्या का फोन आया. सरिता को प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के लिए निर्वाचित किया गया था. फोन सुनकर सरिता न जाने कितने वर्ष पीछे पहुंच गई. सरिता ने कभी भी मन में धन-सम्पत्ति की इच्छा नहीं पाली थी, लेकिन मां सरस्वती का वरद हस्त वह अवश्य चाहती थी. छोटे कस्बे में रहने के कारण बचपन में वह भी उसे नहीं मिल पाया. अक्षर-ज्ञान भले ही उसे हो गया हो, पर शिक्षित कहलाने जैसी योग्यता उसे नहीं मिल पाई थी. यों उसके सर्वगुणसम्पन्न होने में इसके अतिरिक्त कोई कसर नहीं रही थी, इसी कारण सुरेश जैसा योग्य जीवनसाथी उसे मिल पाया था. सुरेश ने विवाह होते ही उसकी शिक्षा की ओर ध्यान दिया. शीघ्र ही वह कमी भी पूरी हो गई और सरिता अध्यापिका बन गई. उसकी सहकर्मी नंदिता पेंटिंग में निपुण थी. उसी की संगति में सरिता ने भी पेंटिंग में हाथ आज़माया. एक बार अध्यापकों के लिए राज्य स्तर पर आयोजित ‘रंग भरो प्रतियोगिता’ के लिए सरिता ने अपनी प्रविष्टि भेजी. सूरज की सुनहरी किरणों और इंदधनुष की सतरंगी आभा को उसने मन से सजाया. आज सचमुच उसकी सतरंगी आकांक्षा फलवती हो गई थी.
सतरंगी आकांक्षा बहुत अछि रचना है लीला बहन .
जब मन में सतरंगी आकांक्षा जन्म लेती है, तो सरिता शिक्षित भी हो जाती है और पुरस्कृत भी. आज नेताजी सुभाषचंद्र का जन्मदिन है. उनके मन में भी आजादी की सतरंगी आकांक्षा ने जन्म लिया और आजादी हमारी होकर रही. सरिता के अद्भुत साहस को नमन करते हुए नेताजी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि.