उफ़ ये सेल्फी
आया मोबाइल मेरे जीवन में जब से,
खींचूं नित तस्वीर तब से,
कई तरह से मुंह बनाके,
सेल्फी खींचूं इतराते,
नयन भी मटकाता हूं,
बदल बदल कर पोज़,
होंठ भी कई तरह के बनाता हूं,
डी पी भी बदलता हूं मैं रोज,
मस्त हो कर मैं तब से,
नये जगह का करता हूं नित खोज,
चाहे हो अस्पताल या हो कोई भोज,
नहीं करता मैं इसमें कोई ओज,
आती रेल के सामने,
सड़क के लगे जाम में
खेल के मैदान में,
भगवान के सामने,
ऊंचे छत की रेलिंग पर,
सब्जी बेचते ठेली पर,
आईसीयू में पड़े मरीज के साथ,
वाकिंग पर गए डागी के साथ,
कभी उठाऊ अपना हाथ,
ताकि समझे लोग मेरे जज़्बात,
चाहता था बताना कब से,
क्या – क्या आए हैं बदलाव,
आया मोबाइल मेरे जीवन में जब से,
✍️ संजय सिंह राजपूत ✍️