कविता

कहां मिली आज़ादी हमको

कहां मिली आजादी हमको, हम तो अभी तक परतंत्र हैं,
ब्रिटिश शासक चले गए, चेलों को अपने छोड़े हैं।
सर्वधर्म समभाव के भारत को, जाति – धर्म में तोड़े है,
भारत विश्व गुरु बन जाता, पर नापाक कुछ बंदे हैं।
सत्तर साल बाद भी हमारी, दुखी सारी प्रजातंत्र है।
कहां मिली आजादी हमको, हम तो अभी तक परतंत्र हैं।।

हर साल जनवरी छब्बीस को, आता दिवस गणतंत्र है,
बना संविधान बतलाया गया, आजादी का यह मूलमंत्र हैं।
जनता है त्रस्त और सरकारी तंत्र, सब अपने में मस्त हैं,
घोषणा, घोटाले बस दो ही काम नेताजी का,
करते हैं फिर उसे, छुपाने में ही व्यस्त हैं।
बिल पास होता नहीं चलता कभी ठीक से संसद सत्र है।
कहां मिली आजादी हमको, हम तो अभी तक परतंत्र हैं,

अभी तक हमें नहीं मूल अधिकारों का मदद मिला।
बनकर हम रह गए पार्टियों के वोट बैंक का सिर्फ किला,
कहते हैं करूंगा मैं देश का सम्पूर्ण विकास सही।
पर सच्चाई कुछ और है भईया मोरे,
हुआ है ना गांव या गरीब का विकास अब तक कहीं।
अंग्रेजी शासन पर ही आधारित लगता हमारा राजतंत्र है।
कहां मिली आजादी हमको, हम तो अभी तक परतंत्र हैं,
✍️ संजय सिंह राजपूत ✍️

संजय सिंह राजपूत

ग्राम : दादर, थाना : सिकंदरपुर जिला : बलिया, उत्तर प्रदेश संपर्क: 8125313307, 8919231773 Email- [email protected]