दल – दल में दलित
हाय – हाय दलित की नेता, देखो अपने मन – दर्पण में,
दलित, शोषित, आदिवासी, हैं अभी उसी दल-दल में।
तुम तो दलित को पलित कर, खुद रहने लगी बंगले में,
हाथियों का शहर बसा, दलितों को भेजा जंगल में।
सर्वजन हिताय – सर्वजन सुखाय आप का नारा था,
दबे कुचलों का विकास ही, आपको प्यारा था।
दलितों का हित होगा, सोच दलितों ने आपको दुलारा था।
अपना बस हित किया, धन – संम्पति आपको प्यारा था ,
सबका तो हित ना हुआ, कोई किसी का मित ना हुआ,
ऊंच – नीच की खाई बढ़ी, कांशीराम का सपना चूर हुआ।
नारी होकर कन्या का, आपसे इज़्ज़त ना हुआ,
मन मेरा व्यथित होकर, ऐसी रचना पर मजबूर हुआ।
सुबह – शाम चुनाव प्रचार में, बस मुस्लिम ही आपका अपना था
सवर्णों का वोट तो आपके लिए सिर्फ चखना था
पार्टी का प्रचार – प्रसार कर, प्रधानमंत्री बनने का सपना,
दल – दल में दलितों का तोड़ दिया सपना ।।
✍️ संजय सिंह राजपूत ✍️