रो रहा है देश
रो रहा देश है दिल्ली, जेएनयू के कर्णधारों से।
ऊपज गए हैं कई गद्दार, जेएनयू के खलिहानों से।
गद्दार आजादी मांग रहे हैं, सड़कों और चौबारों पर,
मनाते हैं मातम अब ये, नये साल जैसे त्यौहारों पर।।
रोते होंगे बाबा साहेब आज, दलितों के हाहाकारों पर,
भारत तेरे टुकड़े होंगे, सुनकर ऐसे नारों पर।
राजनीति होने लगी अब दलितों के जलते अंगारों पर,
शर्म आ रही राजनीति के खुलते इन बाजारों पर।
अब श्रीमान प्रधानसेवक जी, एक बिल संसद में ला दो,
राष्ट्रद्रोह करने वालों को, सीधे फांसी पर लटका दो।
मां भारती मांग रही आंचल फैला, राष्ट्रद्रोहियो का सर ला दो,
कब आएंगे बुरे दिन इन गद्दारों का, आज वतन को बतला दो।।
✍️ संजय सिंह राजपूत ✍️