लेख
जीवन जीने के दो ही मार्ग हैं, प्रथम लोगों की बातों पर ध्यान न देकर अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहो एवं द्वितीय लोगों की बातें सुनने और उन्हें उत्तर देने में अपना अमूल्य समय नष्ट कर दो। या तो अपने मन के, अपनी आत्मा के दर्पण में स्वयं को देखो या दूसरों की आँखों में अपनी छवि ढूँढने का प्रयास करो। आप विश्वास कीजिए कि दूसरा मार्ग आपको सिवाय असफलता के, नकारात्मकता के कहीं भी नहीं ले जाएगा। लोगों का क्या है, लोग तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे। इस संसार में बुद्ध पुरूषों पर भी कीचड़ उछाला गया है। कौन से ऐसे संत या अवतारी पुरूष थे जिन्हें आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा। इस संसार ने महावीर के कानों में कीलें ठोकीं, मीरा को विष का प्याला दिया, जीसस को सूली पर लटका दिया, गुरू तेग बहादुर को गर्म तवे पर बिठा दिया तो हम और आप किस खेत की मूली हैं। ये तय मान लीजिए कि आप कुछ भी करें आलोचना होना तय है। यदि कोई भी आपकी निंदा या आलोचना नहीं करता तो समझ जाइए कि आप मृतप्राय हैं क्योंकि लोग केवल उन्हीं की आलोचना नहीं करते जो कुछ भी नहीं करते या महत्वहीन कार्य करते हैं। यदि आपकी निंदा होने लगे, आलोचना होने लगे तो प्रसन्न होइए कि आप जो भी कर रहे हैं वो महत्वपूर्ण है, उसके ऊपर अन्यों की दृष्टि है। इस संसार का बड़ा सीधा सा नियम है कि वो पहले आपकी उपेक्षा करेंगे, फिर आपकी निंदा करेंगे, फिर आपसे झगड़ा करेंगे। इन सब के बाद जब आप स्वयं को सही सिद्ध कर देंगे तो आपकी प्रशंसा करेंगे एवं यदि आपने बहुत महान कार्य किया है तो अंतिम चरण है कि आपकी पूजा करने लगेंगे। सफल एवं असफल लोगों में मूलभूत अंतर बस इतना ही है कि सफल लोगों ने संसार की प्रतिक्रियाओं पर ध्यान नहीं दिया और अपने पथ पर चलते रहे, वहीं असफल लोग संसार की बातें सुनकर उद्वेलित होते रहे। कुछ वहीं रूक कर झगड़ा करने में व्यस्त हो गए, कुछ ने व्यथित होकर अपना रास्ता ही बदल लिया। इसलिए लोगों की बातों पर ज्यादा ध्यान न दीजिए, हँसते रहिए, मुस्कराते रहिए। उठिए, जागिए, रूकिए मत जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए। जब कोई दूसरा व्यक्ति हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे , उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता। जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढ़ना नहीं चाहिए। इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। अगर आपको उत्तर देना आवश्यक लगता है तो सबसे अच्छा है अपने मन में कह लेना। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता है उसे ही आंतरिक प्रसन्नता रहती है।
मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।