पछताओगे !
हाथ मलोगे, पछताओगे ,
अवसर बीते, क्या पाओगे ?
क्रोध एक नाशक ज्वाला है।
मारक गरलमयी हाला है ।
इसने डसे हजारो रिश्तें
क्रोध एक विषधर काला है ।
अगर क्रोध का वरण किया तो,
दर -दर ठुकराये जाओगे ।
हाथ मलोगे…………….
सहनशीन गर बन पाओगे ।
वसुधा सम ,पूजे जाओगे ।
पुष्प बनोगे ,शीश चढ़ोगे,
बन पाहन ,तोड़े जाओगे ।
ठोकर उर को खाना होगा ,
सत्य प्रेम गर ठुकराओगे ।
हाथ मलोगे …………….
अंकपाश में मुझको भर लो ।
मेरे उर की पीड़ा हर लो ।
मुझको निज उर मध्य बसा लो,
मेरे गीत अधर पर धर लो ।
चला गया प्रिय! दूर अगर मैं
सोचों किसको तड़पाओगे ?
हाथ मलोगे…………..
————© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी