सीढ़ियां
कई दिनों से चाणक्य अपार्टमेंट में रिपेयरिंग का काम चल रहा था. आज वह काम समेट लिया गया. सीढ़ियों का ढेर पड़ा हुआ था. उमेश को उन सीढ़ियों के ढेर की हर सीढ़ी में अपना अतीत झलकता नज़र आ रहा था. केंद्र सरकार के उच्च पद पर आसीन उमेश ने निःस्वार्थ भाव से अनेक लोगों की आवश्यकता-पूर्त्ति के लिए सीढ़ियों की भूमिका अदा की थी. कुछ ने याद रखा था, कुछ ने याद भी रखा और धन्यवाद भी दिया, कुछ ने न याद रखा न धन्यवाद देने की ज़रूरत ही समझी. उमेश को इससे कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता था. वह तो बस यथासम्भव सहायता करने में विश्वास रखता था, फिर भुला देने में ही भलाई समझता था. कभी भरे-पूरे परिवार वाला उमेश पत्नी के देहावसान के बाद आज अकेला रह गया था, लेकिन उसे अकेलेपन का अहसास तनिक भी न होने पाया. बिना कहे न जाने कौन-कौन उसकी हर ज़रूरत पूरी कर जाता था! वह दो साल अमेरिका में प्रेमपूर्वक बेटी-बेटे के पास रहकर आया था. बड़ी मुश्किल से बच्चों ने भारत आने दिया. बेटा छोड़ने आया था. वह ऐसा प्रबंध कर गया, कि पानी-बिजली-टैक्स आदि के बिल उसके मोबाइल से ही पे हो जाएं, पड़ोसिन उनको समय पर सप्रेम खाना-चाय देती हैं, मित्र-मंडली उनसे बराबर मिलती रहती है, नाते-रिश्तेदार स्नेह-प्रेम बनाए हुए हैं. उमेश को कभी पढ़ा हुआ वाक्य याद आया- ”जो सीढ़ियां ऊपर से नीचे ले आती हैं, वही नीचे से ऊपर ले जाने में भी समर्थ हैं.” इन्हीं सीढ़ियों ने उस समय उसे संतुष्टि दी थी, आज खुशियों की खुराक दे रही हैं.
लोगों को भरपूर सम्मान दीजिये…!
इसलिए नहीं कि उनका अधिकार है…!!
बल्कि इसलिए कि आपमें संस्कार है….!!!!