राजनीति

पद्मावत विरोध के पीछे करणी सेना की हिंसा कहीं साजिश तो नहीं ?

फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली की फिल्म पदमावत के खिलाफ जिस प्रकार से हिंसक प्रदर्शन हुए वह कहीं देश विरोधी एक और साजिश तो नहीं है? जिस समय पीएम नरेंद्र मोदी विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन में भारत की शानदार तस्वीर पेश कर रहे थे और वह कह रहे थे कि आइये हम सब पुरानी बातों को छोड़कर आगे बढ़ें तथा वहां से न्यू इंडिया के समान एक नया संसार बनाने की बात कर रहे थे तथा उनके भाषण की पूरी दुनिया में चर्चा व प्रशंसा हो रही थीं तथा उसके तुरंत बाद देश की राजधानी नई दिल्ली में आसियान समूह के दस शासनाध्यक्ष शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे तथा वह भारतीय गणतंत्र की विभिन्न परम्पराओं व संस्कृति एवं सभ्यता के दर्शन करने के लिए आये हैं। उस समय पद्मावत जैसी महज एक बकवास मनोरंजक फिल्म को लेकर जिस प्रकार से हिंसा की गयी वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण, निराशाजनक व निंदनीय है। क्या इस समय इस प्रकार के हिंसक आंदोलन से केवल भाजपा ही परेशान होगी नहीं इससे तो पूरे भारत की गलत तसवीर ही दुनिया के सामने चली गयी है। यह बेहद दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब भारत के समस्त मीडिया और सोशल मीडिया को दावोस शिखर सम्मेलन में भारत और आसियान देशों के साथ भारत के मजबूत होते रिश्तों पर बहस और चर्चा करनी चाहिए थी तब वह पदमावत के खिलाफ भाजपा शासित चार राज्यों में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों की तस्वीरें दिखा रहा था, अभिव्यक्ति की आजादी पर फर्जी बहसों का आयोजन टीवी चैनलों में हो रहा था।
पदमावत फिल्म के प्रदर्शन से लेकर और अब तक जो वातावरण देश में बना है उसके लिए देश के सभी जिम्मेदार नागरिक व संस्थाएं बराबर की दोषी है। फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली वर्तमान समय में एक बड़े फिल्म निर्माता हैं तथा ऐसा लगता है कि उन्होंने जानबूझकर एक बेहद विवादित विषय पर विवादित फिल्म बनाकर देश के अंदर राजनैतिक ड्रामा खड़ा करने की शुरूआत कहें या फिर साजिश रच दी थी? इस फिल्म की जबसे शूटिंग शुरू हुई थी तभी से विवाद होने लग गये थे। यदि संजय लीला भंसाली शुरूआत में ही राजपूतों और करणी सेना के साथ सारे विवाद सुलझा लेते तो आज देश के यह हालात उत्पन्न ही नहीं होते लेकिन यहां तो भंसाली को धन कमाने के साथ अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सर्वोच्च अदालतों से लेकर सड़क और टी वी चैनलों पर बहसें करानी थीं तथा कानून और व्यवस्था के नाम पर हिंसा करानी थी। पदमावत मामले को लेकर जो हिंसा हुई है उसकेे लिए केवल करणी सेना व उसके अराजक तत्व ही जिम्ेदार नहीं हैं औैैर यह कहना भी पूरी तरह सही नहीं है कि चार भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने घुटने टेक दिये। यह तो केवलटी वी मीडिया के दिमाग की उपज है कि इस मामले को उसने किस तरह से पेश किया है और जबर्दस्ती करणी सेना और संजय लीला भंसाली को एक ऐसी बहुत बड़ी समस्या बनाकर पेश कर दिया कि उसके आगे सीमा पर आतंकवाद और प्रदूषण की रैकिंग मामले मेें भारत का 177 वां स्थान आया। 26 जनवरी के अवसर पर पदमावत के नाम पर जो हिंसा हुई क्या हम उसी के साथ पीएम मोदी के न्यू इंडिया के सपने को साकार करने में सक्षम हो सकेंगे।
हिंसा के स्वरूप पर जरा नजर डाली जाये तो पता चलेगा कि वह कितनी वीभत्स थीं। ऐसा साफ प्रतीत हो रहा है कि यह सुनियोजित हिंसा थी। हरियाणा के गुरूग्राम में स्कूली बच्चों की बस पर जिस प्रकार से हमला किया गया और उसमें जो आरोपी गिरफ्तार किये गये उनमें छह नाबालिग थे। हरियाणा में हिंसक प्रदर्शन अराजक तत्वों ने हाइजैक किया ? हरियाणा के मुख्यमंत्री से कानून व्यवस्था को लेकर बीजेपी आलाकमान को जरूर तलब करना चाहिये क्योंकि वहां पर गत दस दिनों में ंरेप की दस जघन्य वारदातें भी हुई हैं। यदि बीजेपी अध्यक्ष ने हरियाणा पर अपनी तीव्र नजर नहीं डाली तो यहां पर बीेजेपी को लोकसभा चुनाव में घाटा अवश्य उठाना पड़ सकता है। इसी प्रकार गुजरात की हिंसा में भी यह देखना होगा कि कहीं वहां करणी सेना के नाम पर पटेल आंदोलन के नेताओं ने तो अपनी भड़ास निकाली है यह सभी बातें राज्य सरकारों की खुफिया एजेंसियों को देखनी और परखनी चाहिये।
अभी तक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि करणी सेना ने तो दावा किया है कि हरियाणा में स्कूली बच्चों ंकी बसों पर हमला हमने नहीं कराया लेकिन संजय लीला भंसाली एंड कंपनी ने देशवासियों से शाांति बनाये रखने की कोई अपील नहीं की है? कहीं हिंसा के पीछे नोटबंदी जीएसटी और गुजरात में हारे हुए लोगों की सुनियोजित साजिश तो नहीं है। इस हिंसा के पीछै एक नहीं कई बिंदुओं पर जांच का समय है। एक बिंदु यह भी है कि जब फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार अक्षय कुमार अपनी फिल्म पेडमैन को कई कारणों से नौ फरवरी तक टाल सकते हैं तो पदमावत की रिलीज भी संजय लीला भंसाली गणतंत्र दिवस व आसियान शिखर सम्मेलन के बाद तक टाल सकते थे। लेकिन इन सभी लोगों को तो भारत की बदनामी करवाने में बड़ा मजा आ रहा था। इस मामले में सभी लोग अपनी टीआरपी बढ़ाने का खेल खेल रहे थे। आखिर दो दिन के अंदर ही यह सारा का सारा मामला स्वतः समाप्त हो जायेगा। इस प्रकरण से फिलहाल केंद्र सरकार ने अपने आप को अलग कर लिया है यह एक सही रणनीति है।
गणतंत्र के महान अवसर पर एक फिल्म की रिलीज के लिए देश करणी सेना व अरजक तत्वों द्वारा बंधक बना लिया गया। देश की राजनैतिक पार्टियों के नेता देश के आम लोगों की सुरक्षा को ताक पर रखकर अपने अपने वोटबैंक को साधने में जुटे रहे। करणी सेना सुप्रीम कोर्ट में तो हार गयी और उसकी खीझ स्कूली बच्चों पर उतारी। गणतंत्र दिवस के पहले जब दस आसियान शासनाध्यक्ष राजधानी दिल्ली में बैठे उस समय पुलिस वाले सिनेमाघरों की सुरक्षा करने में लग गये। पदमावत विवाद का सबसे अधिक मजा तो भारत का दुश्मन पाकिस्तान उठा रहा है वहां पर फिल्म पदमावत बिना किसी कांट छांट के प्रदर्शित की जा रही है? करणी सेना के पास वहां कुछ करने के लिए शेष है क्या ?
आज सोशल मीडिया एक ऐसा मंच उपलब्ध हो गया है कि आप बिना किसी हिंसा के अपनी बातों व मांगों को जनता के साथ शेयर कर सकते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता से हिंदू विरोधी फिल्म का बहिष्कार करने की अपील की जा सकती थी। अभी विगत वर्षो में शाहरूख खान अभिनीत फिल्म रईस का इसी प्रकार से बहिष्कार हो गया था और फिल्म को बाक्स आफिस में पीने के लियें पानी तक नसीब नहीं हुआ था। आज फिल्मी दुनिया में वैसे भी ऐसे लोगों की भरमार है जो आतंकी याकूब मेनन की फांसी रूकवाने के लिए राष्ट्रपति को पत्र भेजते थे, उसके पक्ष में बयानबाजी करते थे। फिल्मी दुनिया को देश के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति व सभ्यता से कोई मतलब नहीं है। उसे तो केवल और केवल अश्लीलता, नग्नता और हिंसा के बल पर पैसा ही कमाना है। आज फिल्मी जगत के माध्यम से जिस प्रकार की कहानियां व अश्लील दृश्यों को परोसा जा रहा है, सभी कोई देख व सुन रहा है। पदमावत को लेकर बेकार की बहस व राजनीति तथा हिंसा हुई है यह सब कुछ एक प्रायोजित नाटक सा है लेकिन इस घटना के पीछे देश हित व देश विरोधी विचारधाराओं के चेहरे एक बार फिर उजागर हो गये हैं। हमें इन सभी घटनाओं से परे उठकर नयू इंडिया की बात करनी होगी कुपोषण तथा प्रदूषण के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई की बात करनी होगी। तभी बनेगा न्यू इंडिया।
मृत्युंजय दीक्षित