गीत/नवगीत

गीत : बेटा चन्दन नहीं रहा

(कासगंज उ प्र में 26 जनवरी तिरंगा यात्रा में मुसलमानों द्वारा देश भक्त युवा चन्दन की गोली मारकर हत्या किए जाने पर सनातन समाज को चेताती नयी कविता)

कोई हल्ला, कोई मातम, कोई क्रन्दन नहीं रहा
कासगंज का ध्वज संवाहक, बेटा चन्दन नही रहा

लिए हाथ में अमर तिरंगा, गद्दारों से छला गया
आँखे खोलो, देखो, चन्दन गोली खाकर चला गया

चीख सको तो चीखो, अपने भारत की बर्बादी पर
डर सकते हो डरो, दुश्मनों की बढ़ती आबादी पर

जान सको तो जानो, जेहादी घातक मंसूबों को
केसरिया धरती पर उगती, हरी विषैली दूबों को

मस्ज़िद वाले गली मुहल्ले, घात लगाए बैठे हैं
और तिरंगे के पथ में, बारूद सजाये बैठे हैं

लो देखो आरम्भ हो गया, नारा ए तदबीरों का
दाढ़ी टोपी पर इठलाती, धारदार शमशीरों का

लो देखो उन्मादी जमघट, हुआ खून का प्यासा है
मज़हब की दुर्गंध उड़ाता, बलवा अच्छा खासा है

वो देखो छाती पे चढ़कर, आज तुम्हारी डोले हैं
तुम घर में गमले रखते हो, वो रखते हथगोले हैं

तुम भाईचारे में रह लो, वो नफरत से जुदा नहीं
सिर्फ उन्हीं का खुदा-खुदा है, बाकी कोई खुदा नहीं

कासगंज की गलियों में जो दहशत खुलकर नाचा है
श्री राम के बेटों के गालों पर एक तमाचा है

अरे हिंदुओ! कहाँ व्यस्त हो, घर की चारदिवारी में
दीमक लग बैठी है शायद, तुम सब की खुद्दारी में

बिजनिस, बीवी बच्चे, सुख वैभव में केवल सिमटे हो
खड़े भेड़िये घर के बाहर, तुम दौलत से लिपटे हो

घर में मंदिर एक बनाकर, हिन्दू बनकर ऐंठे हैं
सड़कों पर हिंदुत्व मरा है, आँख मींच कर बैठे हैं

ये जेहाद अभी सड़कों तक है, आगे भी होना है
गोली खाओ, मर जाओ, बस यही तुम्हारा होना है

मौन तुम्हारा, कायर बनकर, खुद की चिता बनायेगा
कवि गौरव चौहान भला क्या तुमको आज जगायेगा?

चिंता अगर पीढ़ियों की है, वीर बाँकुरे पैदा कर
हर हिन्दू अपने घर में इक बाल ठाकरे पैदा कर

महंगी गाडी जायदाद, बंगले नहीं जान बचाएंगे
दुश्मन से लड़ने के जज़्बे काम तुम्हारे आएंगे

घर में रक्खी चाक़ू छुरियां और कटारी रमा करो
महंगे मोबाइल छोडो, बन्दूक तमंचे जमा करो

जागे ना तो भीड़ बावली, हर घर आँगन फूंकेगी
चन्दन की क़ुरबानी तुम पर बरस बरस तक थूकेगी

— कवि गौरव चौहान

2 thoughts on “गीत : बेटा चन्दन नहीं रहा

  • छोड़ा नहीं यदि धैर्य, हिन्दू तुम पछताओगे.
    अति शीघ्र ही भारत माता, फिर से खंडित करवाओगे.
    फिर से लुटेगी तुम्हारी अस्मत, गलियों और चौबारों में.
    फिर से चिनवा दिए जाओगे तुम मजबूत दीवारों में.
    माँ, बहने चिखेंगी फिर से दुष्टों के प्रहारों से,
    उनकी बोली लगाई जाएँगी फिर हर ओर बाजारों से
    मौन बरत तोड़ो अब उठो, आज़ाद, शेखर, सुभाष बनो
    मत भरोसे बैठो राजा के तुम अपनी रक्षा स्वम करो.
    ना सेना सुरक्षित दिखती है ना राजा अब आज़ाद बचा.
    चप्पे-चप्पे पर दुश्मन हैं. सैना, संसद और गलियों में.
    छोड़ा नहीं यदि धैर्य, हिन्दू तुम पछताओगे.
    अति शीघ्र ही भारत माता, फिर से खंडित करवाओगे.

  • सोमेन्द्र सिंह

    Good

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