सामाजिक

आरक्षण से बिगड़ता भाईचारा

जगन्नाथ प्रसाद आज बहुत उदास होकर तालाब के किनारे बैठा कहीं खोया हुआ था। वह पता नहीं किस सोच में था।
जब मैंने उस हंसमुख को इस हालत में देखा तो मुझसे रहा न गया और मैंने हंसते हुए पूछ लिया। भाई यह हंसता हुआ नूरानी चेहरा आज मुरझाया क्यो है। जगन्नाथ चुप रहा, मैंने उससे फिर कई बार पूछा, तब जाकर उसने बताया, वह कहने लगा भाई तुम जानते ही हो अनिल तिवारी, रमेश सिंह मेरे कितने करीबी मित्र हैं। लेकिन जबसे मेरी नौकरी लगी है, वे दोनों मुझसे बात ही नहीं करना चाहते हैं। हमेशा मुझे देख कर उत्साह के साथ गले मिलते थे।
हम सभी एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते थे। वे लोग भी आर्थिक दृष्टि से मेरे ही श्रेणी के हैं। वे दोनों मेरे से ज्यादा होनहार हैं, जिसके कारण बचपन से लेकर आज तक हमेशा मेरी पढ़ने में मदद करते थे। मेरे नौकरी लगने से सबसे ज्यादा खुश तो उन्हें ही होना चाहिए। लेकिन पता नहीं क्यों मेरे दोनों प्यारे मित्र अब मुझे अनदेखा कर देते हैं। चूंकि मैं भी अनिल और रमेश को जानता हूं। वे देश गांव में पढ़ने तथा व्यवहार में सबसे अच्छे लड़के हैं। और तीनों अच्छे मित्र भी है। लोग इनकी मित्रता का उदाहरण दिया करते हैं। फिर आज ऐसी स्थिति क्यों आ खड़ी हुई।
मैंने जगन्नाथ से कहा, तुम उनसे बात करो, पूछो आखिर बात क्या है। जगन्नाथ वहां से उठकर चला गया। मेरे मन में कई ख्याल आ रहे थे, जा रहे थे। कहीं किसी लड़की का चक्कर तो नहीं, कहीं किसी ने इन सच्चे मित्रों के बीच किसी ने कोई आग तो नहीं लगाई। क्योंकि इनकी मित्रता से गांव के बहुत से लोग जलते थे। खैर मैं भी वहां से उठकर वापस घर आ गया। लेकिन मेरे हृदय में जगन्नाथ की बातें काले मेघ की तरह घूमड़ रही थी। उसका उदास चेहरा मेरे आंखों के सामने नाच रहा था। खैर धीरे धीरे संध्या का समय आया। अचानक जगन्नाथ फिर दिख गया।
मैंने उसे बुलाया, आते ही मैंने उससे अनिल और रमेश के बारे में पूछा। जगन्नाथ के आंखों में आंसू आ गये। फिर उसने बताना प्रारंभ किया। उसकी बातें सुनकर मैं मुझे अपने भारतीय शासन व्यवस्था पर गुस्सा आने लगा। आज पहली बार मुझे अहसास हुआ कि वास्तव में यह एक बड़ी चुनौती है हमारे समाज में एकता स्थापित करने में ‌जगन्नाथ ने बताया कि अनिल और रमेश की बातें सुन मुझे ऐसा लगा कि जिन्होंने मेरी हर संभव मदद की। आज मैं उन्हीं के हक से उन्हें वंचित कर रहा हूं। उनका गुस्सा मुझे वाजिब लगा। उसने आगे बताया कि वे लोग इस बात से नाराज़ हैं कि हम दोनों तुमसे शारीरिक मानसिक और शैक्षिक योग्यता में अच्छे हैं। फिर भी हमें नौकरी नहीं मिली। पर तुम्हें मिल गई। यह तो नाइंसाफी है। तब मैंने जगन्नाथ से कहा कि इसमें तुम्हारी क्या गलती है। इसमें उन लोगों को तुमसे रूठने की क्या जरूरत है। इतना सुनते ही जगन्नाथ ने जो उत्तर दिया यह सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे हम अपने भाईचारे को कहीं खोते जा रहे हैं। उसने बताया कि आज इस आरक्षण के कारण ही मुझे यह नौकरी मिली, जबकि अनिल और रमेश की अपेक्षा मेरी योग्यता कम है, यह तो सचमुच नाइंसाफी है। मुझे ऐसा लग रहा है की समाज में एकता और भाईचारे के बीच दूरी बनाने में इसका भी एक अहम योगदान है। आरक्षण से न केवल अशिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है बल्कि आपसी भाईचारे में भी बाधक बन रहा है। इसपर जब मैंने पूछा तुम अब क्या करोगे। जगन्नाथ का यह उत्तर सुन मेरे हृदय में इन तीनों मित्रों के भावों के प्रति मुझे नतमस्तक होने का दिल करने लगा। परंतु नहीं कर पाया। जगन्नाथ ने कहा कि मुझे वे दोनों प्यारे मित्र चाहिए, मुझे आपसी सौहार्द चाहिए, मुझे यह स्नेह भक्षक आरक्षण नहीं चाहिए।।

✍️ संजय सिंह राजपूत ✍️

संजय सिंह राजपूत

ग्राम : दादर, थाना : सिकंदरपुर जिला : बलिया, उत्तर प्रदेश संपर्क: 8125313307, 8919231773 Email- [email protected]