लघुकथा

काश!

इस काश! ने कमला की तरह न जाने कितने लोगों के जीवन को आघात-प्रतिघात दिए थे. आज से तीस वर्ष पहले की तरह वह इस काश! से चोटिल हुई थी. यह चोट भी केवल तन की नहीं थी, उसका तन-मन-जीवन सभी कुछ आहत हुआ था. बदल गई थी उसकी दुनिया, खो गई थीं बचपन और यौवन की सखी-सहेलियां, विदा हो गई थी पढ़ाई और प्रतिभा की ललक, पास रह गया था बस काश! इस काश! को वह चाहकर भी आज तक नहीं भुला पाई है.

हमेशा की तरह वह अपने खाली कालांश सखियों के साथ में महारानी कॉलेज की छत पर चहलकदमी कर रही थी. अगले पल क्या होने वाला है, इस बात से अनजान वह सहज ही दीवार पर बैठकर सखियों के संग बतिया रही थी. तभी कॉलेज की चहारदीवारी के पास से दोनों हाथों को खोलकर ज़ोर-ज़ोर से तालियां बजाकर हंसता-बतियाता किन्नरों का एक समूह गुजर रहा था. कमला की नज़र सहानुभूति से उन पर टिक गई. किन्नरों के मुखिया की नज़र भी कमला पर टिक गई, पर यह नज़र सहानुभूति वाली नहीं थी, अनुभव और पहचान की पैनी नज़र थी वह. कुछ ही देर में दरबान को धकियाता, सभी को अचंभित करता वह समूह कॉलेज की छत पर था. बाकी सखी-सहेलियां तो इधर-उधर हो गईं, लेकिन कमला तो उनके घेरे में कैद थी. मुखिया ने उसका हाथ पकड़कर प्यार जताते हुए कहा- ”बेटी तू तो हमारी साथिन है, अब तक हमसे छिपी कैसे रह सकी?” फिर उसके हाथ से किताबें छीनते हुए कहा- ”छोड़ ये किताबें, अब से घुंघरू ही तेरे संगी-साथी हैं, चल हमारे साथ.”

अगले ही पल उनके चंगुल में फंसी हुई कमला तब से काश! को याद करती आ रही है. काश! उस दिन उसने अपनी अभिन्न सखी अनीशा की छत पर न जाने की सलाह मान ली होती.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “काश!

  • लीला तिवानी

    कभी-कभी किसी की छोटी-सी सलाह न मानना जिंदगी भर के लिए मुसीबत बन जाता है. संयोगवश इसी तरह कमला की जिंदगी में अनचाहा मोड़ आ गया और उसकी पूरी जिदगी काश! बनकर रह गई,

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