“गज़ल”
बह्र- 212 212 212 212, काफ़िया – अने, रदीफ़- देखिए
आइना पास है सामने देखिए
सूरतों की कसक मायने देखिए
आप भी बेवजह दाग धोने चलीं
नूर नैना नजर दाहिने देखिए॥
उठ रहें हैं धुआँ किस गली आग है
हद हवा उड़ चली भाप ने देखिए॥
घिर गई रोशनी धुंध की आड़ में
यह पुराना महल छाप ने देखिए॥
राख़ चिंगारियाँ दिल जलाती नहीं
हाल कंपन अधर ताप ने देखिए॥
कुछ दवा भी नहीं नाम इस दर्द का
हो सके तो पुनः आप ने देखिए॥
गैर गौतम गरज पर सुहाते सभी
रात कारी घटा चाँद ने देखिए॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी