दो कविताएँ
फागुन आयो**********
अलविदा बसंत फागुन आयो
रंग बिरंगी संग होली लायो
चंग ढप ढोल डफली बजी
ढोल की थाप पर नाचे नर नार
रे टेसू के फूल खिले रंग करो तैयार
इन रंगों में छिपा मधुर प्रेम व्यवहार
होलिका जलेगी सब होली मनाएंगे
राक्षसी वृतियां जलेगी होगा पाप का
धर्म का प्रह्लाद बचेगा
होगी हरि की जयकार
आयो फागुन को त्योहार
मौसम में सूरज की गर्मी
लगती नहीं अब अच्छी
बैठ न पाते कोई धूप में
फागुन की ये गर्मी
लठमार बृज की होली
और बिहारी जी के दर्शन
फागुन की ये रेलमपेल
देखो कैसे कैसे खेल
— कवि राजेश पुरोहित
भारत का भविष्य ******
बापू तुम याद आते ही मुझे वो तीन बंदर
बहुत याद आते हैं
पहला बन्दर कहता बुरा मत बोलो
दूसरा बन्दर कहता बुरा मत देखो
तीसरा बन्दर कहता बुरा मत सुनो
आज तीनों ही विपरीत दीखता है
करूँ बात अहिंसा की
चहुँ ओर हिंसा है बापू
तुम्हारे सपने जो भारत के लिए थे
वो पूरे नहीं हो रहे
गांवो में आज भी सड़क बिजली नहीं
वही पगडंडिया है पैदल चलना है
इंसानों में मानवता नहीं
भय भूख भ्रष्टाचार है
दहशत में है बेटियाँ
न कोई यहां स्वतंत्र है
महंगाई इस कदर हो गई
दो जून की रोटी अब नसीब नहीं है
बापू विश्वग्राम की कल्पना अब झूंठी लगती है
बापू रेत के घरोंदों सा ईमान
अब मानवों में दिखता है
इंसान अब सस्ते में बिकता है
बापू लूट अत्याचार बढ़ रहे
शांति की बातें अब मिथ्या
कागजों में सिमटा अब भारत का भविष्य
चमचमाती गाड़ियों में आलीशान बंगलों में
अमीरों के घर सजने लगे
देश अमीर गरीब में बंटा जाति धर्म मो बंटा
बापू फिर से लौट आओ
अहिंसा का पाठ पढ़ाओ
— कवि राजेश पुरोहित