तू भी सोच कभी
तू भी सोच कभी
कि मैं तुझे ही सोचती हूं
देख अभी तू भी
कि मैं तुझे ही देखती हूं
सुन कभी मुझे भी
कि मैं बस तुझे ही सुनती हूं
चाह कभी तू भी
कि मैं तुझे ही चाहती हूं
चल कभी तू भी
कि मैं कब से चल रही हूं
दे कभी तो साथ मेरा
कि मैं तेरे लिए ही जी रही हू़ं
गर यही अंत है मेरा
तो मैं सिर्फ तेरे लिए ही मर रही हूं।
— सरोज नेगी