कविता

जीवन का मर्म

जीवन क्या है? इक सपना है
इस सपने की सच्चाई को
आओ हम-तुम मिलकर खोजें
जीवन अपना सुखी बनाएं
कहो जी क्या है? ये जीवन क्या है?

 

मृत्यु क्या है? इक सच्चाई है
इस सच्चाई में है सच कितना?
जीवन जिसको मिला है इक दिन
होगा निश्चय इक दिन मरना
कहो जी क्या है? ये मृत्यु क्या है?

 

हानि क्या है? इक ठोकर है
इस ठोकर से क्या हम सीखें?
ठोकर कहती विरुद्ध चलो मत
साथ प्रकृति के चलना सीखें
कहो जी क्या है? ये हानि क्या है?

 

लाभ क्या है जी? इक चेतावनी
इस चेतावनी का क्या मतलब?
लाभ न होता किस्मत से ही
श्रम की महिमा को जानो अब
कहो जी क्या है? ये फायदा क्या है?

 

यश क्या है जी? मीठा फल है
इस फल से ही सुख मिलता है
संघर्षों से जो नहीं डरता
उसी को जग में यश मिलता है
कहो जी क्या है? यश का मतलब क्या है?

 

अपयश क्या है? इक कठिनाई
यह कठिनाई क्यों होती है?
जब निर्बल मन हो जाता है
हर पल कठिनाई होती है
कहो जी क्या है? ये अपयश क्या है?

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “जीवन का मर्म

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , इस कविता में अनमोल बचन बहुत अछे लगे .

  • लीला तिवानी

    सिर्फ आसमान छू लेना ही काफ़ी नहीं है….

    असली कामयाबी तो, वो है कि, आसमां भी छू लो और पांव भी ज़मीन पर हों.

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