अनुष्ठान
आदत से मजबूर मेघना ने दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली से लिफ्ट का स्विच ऑन किया और दर्द के कारण उसके मुंह से बड़ा-सा उफ़्फ निकल गया. अपनी इस हरकत पर मन ही मन वह बहुत लज्जित भी हुई. उसे अनिल के साहस की कहानी जो याद आ गई थी.
मेघना को हुआ कुछ भी नहीं था. बस, सर्दी के कारण उसके दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली सूजी हुई थी, उस पर सब्जी काटते समय एक कट आ गया था. और अनिल! बचपन में ही एक दुर्घटना में अनिल अपने दोनों हाथ गंवा बैठा था. माता-पिता तो दुखी थे ही, अनिल भी कम परेशान नहीं था. उसके बालमन ने हार मानने से इंकार कर दिया-
”जो दुनिया को नामुमकिन लगे,
वही मौका होता है करतब दिखाने का”.
अनिल अपना सब काम खुद करने लगा, उसने स्कूल में दाखिला लिया, कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी की, कम्प्यूटर का कोर्स करके अब औरों को कम्प्यूटर के कोर्स करवाता है. उसने अपने साथ हुई अनहोनी को अनुष्ठान बना लिया था.
लीला बहन , अनिल जैसा होने के लिए हौसले की जरूरत है .जो जीत गिया , वोह ही सिकंदर .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
ऐसा प्रेरक प्रसंग याद करके मेघना को जरूर यह सोचकर तसल्ली हुई होगी, कि उसकी सूजन और चोट तो एकाध दिन में ठीक हो जाएगी, पर अनिल की चोट भले ही ठीक न होने वाली हो, पर उसके हौसले का अनुष्ठान बराबर जारी है.