ग़ज़ल
आज की रात ये बोलो कि कटेगी कैसे
टूटा है दिल सांस सीने में रुकेगी कैसे
सो गईं थककर तन्हा ये बोझल आँखें
प्यास दीदार की आंखो की बुझेगी कैसे
पूछ लो दिल से कोई फ़ैसला करना है तो
तेरी आदत हूं मैं ये आदत छुटेगी कैसे
अपने दिल से निकालोगे तो ये मुश्किल है
दामन ए गांठ हूं दामन से खुलेगी कैसे
मैं हूं आगाज तेरा और मैं अन्जाम तेरा
हां मेरे बिना तेरी दुनिया ये बसेगी कैसे।
सच है ‘जानिब’ तेरे बिना जीना मुश्किल है
बिना तेरे अब हमारी जान बचेगी कैसे
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’, सीतापुर