“बच्चों अब मत समय गँवाओ”
मौसम कितना हुआ सुहाना।
रंग-बिरंगे सुमन सुहाते।
सरसों ने पहना पीताम्बर,
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
दिवस बढ़े हैं शीत घटा है,
नभ से कुहरा-धुंध छटा है,
पक्षी कलरव राग सुनाते।
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
काँधों पर काँवड़ें सजी हैं,
बम भोले की धूम मची है,
शिवशंकर को सभी रिझाते।
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
तन-मन में मस्ती छाई है,
अपनी बेरी गदराई है,
सभी झूमकर हँसते गाते।
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
निर्मल है नदियों का पानी,
पेड़ों पर छा गई जवानी,
खुश हो करके ये इठलाते।
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
बच्चों अब मत समय गँवाओ,
पढ़ने में भी ध्यान लगाओ,
सीख काम की हम सिखलाते।
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
प्रतिदिन पुस्तक को दुहराओ,
पास परीक्षा में हो जाओ,
श्रम से सभी सफलता पाते।
गेहूँ के बिरुए लहराते।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)