कविता

अंतद्वन्द

समय खेलता है
सबके साथ..
और हम उसके मोहरे
हालातों के जाल में, यूँ घेर लेता
मानो! तमाशा बनकर रह गए हम
इस जिंदगी के खेल में
कभी जीत की खुशी देता
मन को चैन सुकून
तो कभी हार का दुख करता हताश
यही सिलसिला निरन्तर
जीवन भर चलता रहता…
कई बार कुछ वादें करते हैं हम खुद से
पर उसे पूरा नहीं कर पाते
शायद, वही हालात परिस्थिति….
और भुला बैठते हैं
खुद से किए वादों को
पर इन सब में सचमुच है किसका दोष?
सोचता है मन !!
या फिर सब निर्दोष
पर उचित नहीं लगता ऐसा ख्याल !!
बहुत कुछ है अपने बस में
जो हम कर सकते हैं!
पर, करते हैं समय पर दोषारोपण..
परिस्थितियां बस में नहीं थी, कहकर..
इंसान और स्वार्थ का रिश्ता ही कुछ ऐसा है..
खुद को बचाने के लिए
दलील पर दलील देता रहता है।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]