अगर चाहते प्रसन्न रहना
अगर चाहते प्रसन्न रहना, इस इच्छा को प्रबल बनाओ,
दुख से बोझिल इस दुनिया में, सुख के कुछ साधन अपनाओ.
मन को मुक्त करो घृणा से, सबको प्रेम से गले लगाओ,
घृणा से सुख दूर भागता, तुम घृणा को दूर भगाओ.
चिंता के चक्कर से बचना, चिंता चिता से अधिक सताती,
चिता जलाती एक बार में, चिंता हर पल रहे जलाती.
सादा जीवन सदा बिताना, सुख तो सादगी से मिलता है,
सादगी से पनपता सतोगुण, सत्तोगुणी प्रसन्न रहता है.
इच्छाएं कम हों जीवन की, तब संतोष को पा सकते हो,
संतोषी को सुख मिलता है, तभी प्रसन्नता पा सकते हो.
पेड़ों से, नदियों से सीखो, बस औरों को देना,
देने का सुख तब जानोगे, जब सीखोगे खुद भी देना.
प्रेम से निज जीवन को भर दो, प्रेम प्रसन्नता ही देता है,
प्राणिमात्र से प्रेम बढ़ाकर, प्राणी प्रभु को पा लेता है.
निज शरीर की रक्षा करके, रोगों से तुम मुक्ति पाओ,
भौतिक शरीर के माध्यम से ही, आत्मिक सुख को पास बुलाओ.
छिपकर भी अपराध करोगे, मन से छिपा नहीं पाओगे,
अपराधी प्रवृत्ति छोड़कर, सच्ची खुशियों को पाओगे.
मौत अवश्यम्भावी होती है, इसको सदा याद तुम रखना,
तभी बुराई दूर रहेगी और प्रसन्नता का फल चखना.
सद्साहित्य का पठन करो तुम, इस पर करो मनन और चिंतन,
दुर्लभ सुख को पा जाओगे और रह सकोगे खुश मन.
अपनी कमियों को स्वीकारो, तभी निवारण उनका होगा,
कमियां होती हैं मानव में, उन्हें हटाने से सुख होगा.
हर पल में प्यार है,
हर लम्हे में खुशी है,
खो दो तो याद है,
जी लो तो ज़िंदगी है.