ग़ज़ल
मैं दिया हूँ जल उठा कोई न आये,
वस्ल का लम्हा टला कोई न आये।
सीख लूँगा प्यार करना मुस्कुराकर,
भर रहा हूँ हौसला कोई न आये।
ख़ून का रिश्ता सगा था खो गया है,
ज़िन्दगी में अब सगा कोई न आये।
देख लो बदली धरा पर छा गयी है,
नर्क की अब इस धरा कोई न आये।
दिल ख़ुदा की परवरिश में आज भी है,
शर्त ये है दूसरा कोई न आये।
वक्त आगे बढ़ रहा है छोड़कर सब,
आज पढ़ने फ़ातिहा कोई न आये।।
— नवाब देहलवी