ग़ज़ल
ज़माने से नफ़रत के साये गए
चराग़े मुहब्बत जलाये गए
मुहब्बत से मेरी ज़बां बंद थी
वो तोहमत पे तोहमत लगाये गए
मिलीं हम को रातों की तारीकियां
मगर ख़्वाब दिन के दिखाए गए
जो बेघर थे उनको न घर मिल सका
ज़मींदार लेकिन बसाये गए
वतन का नहीं था किसी को ख़याल
यहाँ सिर्फ़ पैसे कमाए गए
सभी चुप हैं दिलदार इस बात पर
ग़रीबों पे क्यों ज़ुल्म ढाये गए
— दिलदार देहलवी