ग़ज़ल
दिल्लगी औ दिल की लगी समझाता कौन है
दर्द दिल में हो तो कहो…. मुस्कुराता कौन है
बनती बिगड़ती देखी है हस्तियों की किस्मत
समय के साथ चलने की शर्त निभाता कौन है
चाँद तारे तोड़ लाऊँ हर दीवाना कहता यही
धर्म जाति का प्रपंच फिर बीच लाता कौन है
जब दीवारें बन जाती हैं सुख दुख का घरौंदा
जिंदगी की अहमियत फिर आजमाता कौन है
मिलना और रुखसत हो जाना रीत है पुरानी
देखते हैं शख्स नया अब हमें लुभाता कौन है
सख्त पाषाणों पर लिख भूल जाते नाम मणि
नाम ह्रदय पर लिखकर फिर बिसराता कौन है
— मनीष मिश्रा मणि