व्यंजन बोल उठे
‘क’ कलम से लिखना सीखो,
‘क’ कमल से हंसना,
‘क’ कलश पानी है भरता,
‘क’ कबूतर उड़ता रहता.
‘ख’ खरगोश है कोमल-कोमल,
‘ख’ खरबूजा गोल-मटोल,
‘ख’ खरल में पिसती बूटी,
‘ख’ खटिया है देखो टूटी.
‘ग’ गमले में लाल गुलाब,
‘ग’ गधे को देखो जनाब,
‘ग’ गैया है सीधी-सादी,
‘ग’ गुड़िया है भुट्टा खाती.
‘घ’ घर को है राज बनाता,
‘घ’ घड़ी से समय पूछता,
‘घ’ घड़ियाल है बड़ा भयानक,
‘घ’ घेरा है बाग बचाता.
‘च’ चम्मच है छोटा-छोटा,
‘च’ से चरखा कभी न सोता,
‘च’ से चमचम मीठी-मीठी,
‘च’ चमकता सूरज प्यारा.
‘छ’ छतरी वर्षा से भीगे,
‘छ’ छलिया जो सबको लूटे
‘छ’ छाजन है साफ बनाता
‘छ’ छप्पर रक्षा करता.
(रुचिपूर्वक जन-ज्ञान के लिए काव्यमय गीत)
सरल भाषा में रुचिपूर्वक व्यंजन-ज्ञान के लिए यह काव्यमय गीत छात्रों में बहुत लोकप्रिय हुआ.