गीत/नवगीत

कहीं भूख से बेदम बचपन

कहीं भूख से बेदम बचपन
कहीं जश्न में छलके प्याले।
पत्थर होते इंसानों को
इंसा करदे ऊपर वाले।।

चकाचौंध वालों को दिखता
काश ज़माने में फैला तम।
काश हमें अपने से लगते
औरों के दुख औरों के ग़म।।
नही छीनते लोग जहां में
हाथ दीन के लगे निबाले…
पत्थर होते इंसानों को
इंसा करदे ऊपर वाले…

भौतिकता की बढ़ी चाह में
पागल लगता है हर कोई।
सब कुछ मुट्ठी में करने को
आतुर लगता है हर कोई।।
धवल वस्त्र में छुपा रहे हैं
लोग जगत कें धंधे काले…

बातें ऊँची नैतिकता की
लेकिन सोच गिरावट वाली।
बाहर जितनी चकाचौंध है
अंदर दुनिया उतनी काली।।
भाव-भावनाओं से मतलब
कब रखते हैं दौलत वाले…

चाँद सितारों की बातों में
गायब हैं रोटी की बातें।
काश याद होती सत्ता को
दीन दुखी की काली रातें।।
सब को रोजी रोटी मिलती
होते नही अगर घोटाले…

सतीश बंसल
१९.०२.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.