“गज़ल”
आयी जिसके हाथ में लाठी मालामाल है
कुर्सी संग दिलवाली मीठी चतुर कमाल है
नाचे गाए मन मुसकाए सुंदर सी काया
आनी जानी दौलत काठी माया मलाल है॥
भरे चौराहे शोर मचा तू चोर मैं सच्चा
पहचानो तो निंदा खोटी नेक निहाल है॥
पोछ रहें है मुँह अपना मानों गंदी नाली
राजनीति बे-वस भई खाटी कैसी ढ़ाल है॥
संत सभा में मातम पसरा प्रभु हुये वनवासी
मजनू बन बजा रहे हैं सीटी चर्चित ताल है॥
औने पौने भाव नप गए मध्यमवर्गी सेठ
उड़नखटोला नभ उड़े माटी चन्दन भाल है॥
गौतम गड्ढा गाल लिए पूछ रही घरवाली
इधर उधर न तक सजना बैठी कोयल डाल है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी