मन…
बहुत सोचता है मन
क्या लिखे क्या न लिखे
असमंजस के घेरे में
मन में जन्म लेते कई सवाल!!
कहीं अंतस में बहता
भावनाओं का बांध टूट न जाए
कहीं सम्वेदनाएँ रौंदी न जाए
और अगर ऐसा हुआ तो!!
और न जाने क्या-क्या अनर्गल बातें
बहुत छटपटाती है उंगलियाँ
लिखने को अंतर्मन का यथार्थ
चाहती है भावों का वंदन
पर सहम जाती है अनायास ही
कुछ तो है जो भयभीत करता है
जिसकी वजह से उठती नहीं कलम
थम जाती है प्रतिक्रिया
एहसास उतरता नहीं
सच की स्याही में
फिर बनती है एक मनगढ़ंत कविता।।