वीर रस, “मनहर घनाक्षरी”
मन में चाह जगाइए देश हो खुशहाल
सीमा चौकी वीर जवान सदा रहे निहाल।
कहीं से कोई बैरी गैरी नहिं आए छिनाल
हनो तमाचा सूजे चीचुका उसका गाल।।
आया था जो घेरने माँ भारती की सीमा शान
भेजो उसको वापसी करके लहू लुहान।
बित्ते भर की देहनी खाँस रहा बेईमान
भारती इतिहास का उल्टा करे अनुमान।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी