शिकायत है अगर तो फिर शिकायत क्यूँ नही करते
शिकायत है अगर तो फिर शिकायत क्यूँ नही करते
सहोगे जुर्म यूँ कब तक बगावत क्यूँ नही करते
हमें बदनाम करके वो हमीं से पूछते हैं अब
कि हम उनसे पुरानी सी मुहब्बत क्यूँ नही करते
ड़री सहमी निगाहे बेटियों की प्रश्न करती हैं
कली की बागबां जाने हिफ़ाजत क्यूँ नही करते
बढ़ा जब बोझ जिम्मेदारियों का तो समझ आया
बड़े होकर बड़े अक्सर शरारत क्यूँ नही करते
इबादत तो दिखावे की नही है चीज कोई फिर
दिखावे के बिना हम सब इबादत क्यूँ नही करते
मकां कोठी दुकानों की वसीयत की सभी ने हम
कभी अपनी रवायत की वसीयत क्यूँ नही करते
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम ईसाई पारसी कोई
धरम का नाम हम सब आदमीयत क्यूँ नही करते
सतीश बंसल
०५.०२.२०१८