डायरी
एक डायरी जिंदगी की
अतीत के पन्नों को समेटे
मन के अंतहीन तहों में
सहेजे रखा है वर्षों से
जब थक जाता है मन
वर्तमान की चुनौतियों से लड़ते-लड़ते
तब रात की तन्हाईयों में
पलट लेते हैं बीते दिनों के पन्ने
संचित यादों का धरोहर
उसमें जिया हुआ जीवन
अपनों का मजबूत हाथ
जो थामे रखा था कदम-दर-कदम
वो बचपन… वो जवानी का सफर…
भोर की सादगी फूलों सी खिलखिलाती हुई
सपनों की सीढ़ी पर चढ़कर
चांद का पल्लू छूकर आ जाते थे
सूरज से डटकर नजरें मिलाना
तारों को उंगलियों पर गिनना
एक पूरा यादों का स्वर्णिम इतिहास
जी रहा है भीतर
समय बढ़ता है निरन्तर
पर कभी सयाना नहीं होता
पर हमें जरूर परिपक्व और
परिस्थियों के हाथों
जूझना – लड़ना सीखा देता है
जर्द पन्नों में कैद हो जाती है
बचपन, जवानी के दिन
फिर शुरू होती है
हम-तुम, जिन्दगी और संघर्ष
जो चलती रहती… जीवन पर्यन्त।
बबली सिन्हा