बिन तुम्हारे
अर्थ का अनर्थ है ,
बिन तुम्हारे जीवन
ये व्यर्थ है।
शब्द सिर्फ शब्द हैं।
बिन तुम्हारे जिंदगी
ये अव्यक्त है।
गूँज है नाद की।
बिन तुम्हारे गूँज भी
सिर्फ दर्द है ।
दर्द ही दर्द है ,
बिन तुम्हारे जिंदगी
तर्क ही तर्क है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़