कविता

ठहराव

ठहरता नहीं मन, सिरे पर
घूर्णन गति की तीव्रता संग
जा ठहरता है
तुम्हारे यादों के केंद्र में

एक दबाव
हृदय पर समावेशित होता है
शायद गुरुत्वाकर्षण प्रेम का

हलचल की सुगबुगाहट
हौले-हौले से सुनाई देती है
एहसास बदलता है करवटें
होती है अंगड़ाईयाँ जवां

उठ रही अंतस में तेज हवाएं
गुलाबी झोंके संग प्रेमसिक्त
बदलता जा रहा मन का आवरण
तुम्हारे सान्निध्य में समाहित होकर।
ठहरता नहीं मन, सिरे पर…

*बबली सिन्हा

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