ग़ज़ल
तुम्हारी ख्वाहिशें इतनी कि पूरा करने’ दम निकले
मे’री भी ख्वाहिशों का जो ज़नाज़ा निकले’, कम निकले |
किया था जिंदगी जिसके हवाले, वो अलग निकले
न विश्वास और निष्ठा, बेवफा मेरे सनम निकले |
पिया को बेवफा कहकर, किये उसको अनादर हम
दिया मन प्राण जिसको वह, वही इंसान हम निकले |
डरा मासूम बालक के वो’ कातिल किन्तु ये नेता
बचाता है सदा क़ातिल को, भयानक बेरहम निकले |
थी’ सच्ची भक्ति सब भक्तों में’ धोखेबाज़ था बाबा
वो’ सारे मज़हबी निष्ठा भरोसा सब भरम निकले |
हुआ क्या चीन को, क्यों तोड़ता अच्छे सभी रिश्ते
यहीं हो ख़त्म वरना साल भर यूँ दम-ब-दम निकले |
मुहब्बत जो किया था बेवफा से भोगना फल अब
विशाले सुख फ़िराके खौफ़, ‘काली’ तेरे दम निकले |
कालीपद ‘प्रसाद’