सामाजिक

भारत में दोहरी कानून व्यवस्था क्यों ?

जब हमारे भारतीय कानून व्यवस्था को शिक्षित समाज नहीं समझ पा रहा है, तो अनपढ़ व्यक्तियों का क्या होगा।
भारत जैसे विकासशील, धर्मनिरपेक्ष देश में आखिर दो तरह के कानून व्यवस्था की क्या जरूरत। कल मेरे एक मित्र ने हनुमान प्रसाद जी के बारे में बड़ी – बड़ी बातें करने लगा। कहने लगा, आम तौर पर वे देश और देश की संस्कृति पर बहुत गर्व करते हैं। लेकिन देश के कानून व्यवस्था को लेकर वे दुखी हो जाते हैं। जब भी देश में कोई घटना हो, वे फैसला सुना देते हैं। और आश्चर्य तब होता है, जब उनका फैसला एक दम सही होता हुआ साबित होता है। उस समय एक ही बात मन में घूमड़ने लगता है कि हमसे अच्छे तो हनुमान प्रसाद जी हैं। जिनका कहना सौ टका सही हो रहा है। मुझे यह बात हजम नहीं हुई, और इसी बात को लेकर मेरे मित्र शमशेर से बहस होने लगी। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की। मैंने कहा भारत देश एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ अमन चैन से रहते हैं। यहां कानून का राज हैं। सभी लोग चाहे किसी धर्म, राजनीतिक दल, या कोई सरकारी अफसर ही क्यों न हो। सभी को कानून सम्मत चलना पड़ता है। इसी बीच हनुमान प्रसाद जी का आगमन हो गया। मेरे लिए तो जैसे सोने पर सुहागा वाली बात हो गई।
मैं उनको देख भारतीय कानून व्यवस्था के बारे में और जोर – शोर से प्रशंसा करना शुरू किया। तभी हनुमान प्रसाद जी का चेहरा तमतमा उठा, क्यों दादा आप भारतीय कानून व्यवस्था से दुखी हैं। वे कहने लगे, तुम्हारा पढ़ना – लिखना बेकार है। क्या तुम जानते हो अपने भारत में दोहरी कानून व्यवस्था चलता है। हां कहने मात्र के लिए सबके लिए एक ही कानून हैं। कहने लगे क्या तुम जानते हो। भारत का कानून व्यवस्था क्या है। मैं तुम्हें बताता हूं। कहने लगे। नेता चाहे तो दो सीट से एक साथ चुनाव लड़ सकता है ! लेकिन तुम दो जगहों पर वोट नहीं डाल सकते। नेता जेल में रहते हुए चुनाव लड सकता है। लेकिन तुम जेल मे बंद हो तो वोट नहीं डाल सकते।
नेता चाहे जितनी बार भी हत्या या बलात्कार के मामले में जेल गया हो, फिर भी वो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जो चाहे बन सकता है। लेकिन तुम कभी जेल चले गये, तो अब तुमको जिंदगी भर कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी।
नेता अंगूठा छाप हो तो भी भारत का फायनेन्स मिनिस्टर बन सकता है। लेकिन तुम्हें बैंक में मामूली नौकरी पाने के लिए ग्रेजुएट होना जरूरी है। नेता यदि अनपढ़-गंवार और लूला-लंगड़ा है तो भी वह आर्मी, नेवी और ऐयर फोर्स का चीफ यानि डिफेन्स मिनिस्टर बन सकता है। लेकिन तुम्हें सेना में एक मामूली सिपाही की नौकरी पाने के लिए डिग्री के साथ 10 किलोमीटेर दौड़ कर भी दिखाना अनिवार्य है।
और तो और जो खुद दसवीं तक पढ़ा हो वो नेता देश का शिक्षामंत्री बन सकता है। सरकारी कर्मचारी 30 से 35 वर्ष की संतोष जनक सेवा करने के उपरांत भी पेशन का हकदार नहीं हैं। यहां जब कि मात्र एक दिन के लिए विधायक /सांसद बन जाने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन की व्यवस्था हमारे इसी भारतीय कानून व्यवस्था की देन हैं। यह कहाँ का न्याय है। नेता और जनता, दोनों के लिए एक ही कानून होना चाहिये। मैं यह नहीं कह रहा कि सिर्फ कानून व्यवस्था एक दम खराब है, अब इसका कुछ नहीं हो सकता है, जनता के हित में कानून बनाया जाता है। क्या तुम्हें लगता है कि यह उपरोक्त कानून व्यवस्था ठीक है। दादा जी की बातें सुनकर मैं भी आश्चर्य में पड़ गया। मैंने कहा दादा, फिर हमें इस व्यवस्था को बदल देना चाहिए। दादा ने कहा, बेटा हम सब जिनको अपनी आवाज बना, संसद, राज्यसभा भेजते हैं। यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि वे जनता की सेवा हित के लिए सदन में अपनी आवाज बुलंद कर इन समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश करें। यह हम नहीं बदल सकते।
✍️ संजय सिंह राजपूत
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संजय सिंह राजपूत

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