गज़ल
कैसे बचे कोई तेरे इस हुस्न-ए-बेमिसाल से
दूर रह के भी नहीं हटते हो तुम ख्याल से
साँसें जप रही हैं मेरी माला जिसके नाम की
वही है बेखबर ना जाने कैसे मेरे हाल से
नज़रें झुका के वो बिना कहे-सुने ही चल दिए
लगता है खफा हो गए मेरे किसी सवाल से
चाँद के आने की, ना आने की फिक्र छूट गई
रोशन हुई रातें मेरी जबसे तेरे जमाल से
हाथ थाम लो मेरा कि अब चला जाता नहीं
दम अटक रहा है और कदम भी हैं निढाल से
रूसवाईयां, तनहाईयां तोहफे हैं सारे इश्क के
दुश्मनों को भी खुदा बचाए इस बवाल से
— भरत मल्होत्रा