मोह्हबत
मेरे आंसुओं का हिसाब कैसे चुका पाओगे
जाओगे जब जन्नत में मेरा ही नूर पाओगे
प्यार की जरूरत ने हमें भिखारी बना दिया
दीवाने प्यार के हम जैसे और कहाँ पाओगे
देखी न होगी ऐसी दर्द की दीवार ओ खास
सदियों में कोई राधा हम जैसी ढूंढ पाओगे
कब मांगा था तेरे दीदार के सिवा कुछ और
हम तो हैं सिर्फ तुम्हारे कब हमको जान पाओगे ।
दिया है आंसुओं का तोहफा वो भी मंजूर है
रूठ गए गर हम तो कैसे खुश रह पाओगे !
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़