सुन रहा आसमां
वाचिक स्रग्विणी छंद
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सुन रही है जमीं, सुन रहा आसमां।
प्रेम की बात को, बुन रहा आसमां।।
तुम चली हो किधर, आ जरा इस डगर।
राह कांटे इधर, चुन रहा आसमां।।
ना लडो इस समय, साथ मेरे चलो।
देख बातें सभी, सुन रहा आसमां।।
चांद की चांदनी में, गले आ मिलें।
आज तो प्रेम ही, *गुन रहा आसमां।।
इन लता कुंज में, चांद से चांदनी।
प्यार ही प्यार कर, धुन रहा आसमां।।
नोट- गुन = गुणगान करना।
🙏🙏🙏🙏🙏
।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045