गज़ल
सारे चेहरे हैं अनजाने किसको दूँ आवाज़ यहां,
हो गए अपने भी बेगाने किसको दूँ आवाज़ यहां
महफिल खत्म हुई अपने-अपने रस्ते सब यार गए,
मुझको डसते हैं वीराने किसको दूँ आवाज़ यहां
पीने लगे लहू भाई-भाई इक दूजे का जबसे,
बंद हुए सारे मयखाने किसको दूँ आवाज़ यहां
अंधे हो कर दौड़ रहे हैं ख्वाहिशों के पीछे-पीछे,
सारे के सारे दीवाने किसको दूँ आवाज़ यहां
भूल गई दुनिया मेरा किस्सा बीते कल की तरह,
कैसे कोई मुझे पहचाने किसको दूँ आवाज़ यहां
दो पल मेरे पास बैठने का भी इनको वक्त नहीं,
बच्चे होने लगे सयाने किसको दूँ आवाज़ यहां
— भरत मल्होत्रा