हास्य गीत – किचन में मिल गए हो तुम
किचन में मिल गए हो तुम सहारा हो तो ऐसा हो
जिधर देखूं तूम्हीं तुम हो नजारा हो तो ऐसा हो
पडे हैं रात के बर्तन
मगर महरी नहीं आई
नहीं कोई फिकर मुझको
तूम्हीं निपटाओगे भाई
समझ जाओ निगाहों को नजारा हो तो ऐसा हो
किचन में मिल गए हो तुम सहारा हो तो ऐसा हो
बड़ी सांसत में हम तो थे
गई छुट्टी पर महराजिन
फिकर होती थी हमको भी
कटेगा कैसे पूरा दिन
अगर मंज जाएं सब बरतन पिला दो चाय भी भाई
बड़े ही प्यार से अपना गुजारा हो तो ऐसा हो
किचन में मिल गए हो तुम सहारा हो तो ऐसा हो
तुम्हें ऑफिस भी जाना है
मुझे खाना भी खाना है
जो मैंके वाले आएंगे
उन्हें भी कुछ दिखाना है
है पूरा साफ सुथरा घर बहारा हो तो ऐसा हो
किचन में मिल गए हो तुम सहारा हो तो ऐसा हो
— मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ