अपराधबोध
चंद्रेश बियर बार के सामने अनिश्चय में खड़ा था। वह इससे पहले कभी किसी बार में नहीं गया था। लेकिन आज मन बहुत खिन्न था। वह भीतर चला गया।
आज फिर छोटे भाई का फोन आया था कि भाभी को अपने साथ शहर ले जाकर किसी डॉक्टर को दिखाओ। दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है। पर वह कैसे समझाता कि वह यहाँ बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर पा रहा है। यहाँ तो सही से रहने की व्यवस्था भी नहीं है।
चंद्रेश को मानसी का खयाल आया। यहाँ के आपाधापी से भरे जीवन में एक वही तो थी जिसके साथ वह कुछ पल सुकून के बिता लेता था। इस समय वह मानसी का साथ चाहता था। पर वह तो कॉल सेंटर में नाइट ड्यूटी करती थी। अतः वह मन बहलाने के लिए यहाँ आ गया। मानसी का चेहरा याद आते ही मन में अपराधबोध जागा। उसने अपने शादी शुदा होने की बात उसे नहीं बताई थी।
कुछ ही देर में बार बालाओं का नृत्य शुरू हुआ। मद्धम रौशनी में एक चेहरे पर उसकी निगाह अटक गई। गिलास हाथ से फिसलते फिसलते रह गया।
उस बार बाला की आँखों में भी अपना सच सामने आ जाने की शर्मिंदगी थी।