ग़ज़ल
कौन मुर्दा, कौन जिंदा है, यहां पर,
कौन कितना नेक बंदा है, यहाँ पर!
छीन ली इज्जत ये, किसने नारियों की,
आजकल इंसा दरिंदा है, यहाँ पर!
मन के काले, तन के उजले हैं सभी अब,
मासूम जितना, उतना गंदा है, यहां पर!
जिसमें मुनाफा सौ गुना, है मंजूर वो ही,
हो गलत चाहे, वो धंधा है, यहां पर!
लूटकर खाया है, जिसने जिदंगी भर,
बस वो ही बेशर्म शर्मिंदा है, यहां पर!
पाक जिनकी रूह , हो मन साफ जिसका,
लोग ऐसे ‘जय’ चुनिंदा है, यहां पर!
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’
हरदा म प्र