स्वास्थ्य

टहलना और दौड़ना

इस बात पर सभी विद्वान् एकमत हैं कि टहलना सर्वोत्तम व्यायाम है। यह हर उम्र के व्यक्तियों द्वारा हर जगह किया जा सकता है और इसका कोई भी कुप्रभाव कभी दृष्टिगोचर नहीं होता। यदि यह नियमित किया जाये तो लाभ ही लाभ मिलता है और यदि कभी-कभी छूट जाये तो भी हानि नहीं होती।

प्रातःकाल का समय टहलने के लिए सर्वोत्तम है, क्योंकि उस समय हवा में आक्सीजन सबसे अधिक होती है, वातावरण शुद्ध और आनन्ददायक होता है और शान्ति भी होती है। सूर्योदय से एक घंटा पहले से लेकर एक घंटा बाद तक का समय टहलने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल न टहल सकते हों, तो सायंकाल सूर्यास्त के समय पर टहला जा सकता है।

टहलना प्रायः हर मौसम में किया जा सकता है, लेकिन यदि अत्यधिक ठंड हो, बारिश हो रही हो, कोहरा हो, तेज हवा या आँधी चल रही हो या अन्य कोई कारण हो, तो टहलने के लिए न निकलना ही अच्छा है। इसके स्थान पर उस दिन जाॅगिंग (दुलकी दौड़ यानी एक ही स्थान पर खड़े-खड़े दौड़ना) अथवा अंग व्यायाम कर लेने चाहिए।

टहलने के लिए कोई पार्क या नदी का किनारा हो, तो सबसे अच्छा है। यदि यह उपलब्ध न हो, तो ऐसी चौड़ी सड़कों पर भी टहला जा सकता है, जहाँ पेड़ हों और टैम्पो, मोटरगाड़ियों आदि का प्रदूषण न हो।

टहलते समय कपड़े मौसम के अनुकूल, परन्तु ढीले और हलके होने चाहिए। पैरों में रबड़ की चप्पलें हों तो बेहतर, जाड़ों में कपड़े के जूते पहनकर भी टहला जा सकता है। भारी जूते पहनकर टहलना उचित नहीं। टहलते समय शरीर सीधा रहना चाहिए और चाल तेज होनी चाहिए, जैसे कहीं जाने की जल्दी हो। टहलते समय गहरी साँसें लेना बहुत लाभदायक है।

टहलते समय आप प्राणायाम भी कर सकते हैं। इससे टहलने का लाभ कई गुना बढ़ जाता है। इसकी विधि यह है कि चार कदम चलने तक साँस भरनी चाहिए और फिर छः कदम चलने तक साँस निकालनी चाहिए। इस प्रकार लयपूर्वक साँस लेते रहने से प्राणायाम होता रहता है। इस गिनती को आप अपनी सुविधा और क्षमता के अनुसार कम या अधिक कर सकते हैं। मुख्य बात यह है कि साँस लेने और छोड़ने में एक लय होनी चाहिए। टहलते समय साँस को कभी-भी रोकना नहीं चाहिए।

टहलना प्रतिदिन एक किलोमीटर से प्रारम्भ करना चाहिए और प्रति सप्ताह आधा किलोमीटर बढ़ाते हुए अपनी शक्ति, समय और सुविधा के अनुसार तीन से पाँच किलोमीटर तक प्रतिदिन टहलना चाहिए। तेज गति से आप आधा घंटे में तीन किलोमीटर सरलता से टहल सकते हैं।

हालांकि तेज गति से टहलने पर हमें व्यायाम के सभी आवश्यक लाभ मिल जाते हैं, लेकिन कुछ लाभ ऐसे हैं जो हमें दौड़ने से ही प्राप्त होते हैं। दौड़ना भी किसी भी उम्र में प्रारम्भ किया जा सकता है। इसलिए यदि आप प्रतिदिन नियमित दौड़ सकते हैं तो अवश्य दौड़ना चाहिए।

दौड़ने की गति अधिक तेज़ न हो। बस उतनी ही हो कि आप आराम से दौड़ सकें। दौड़ते समय नाक से साँस लेनी चाहिए, लेकिन यदि आप हाँफने लगें तो मुँह से भी साँस ले सकते हैं। यदि आपका दम फूल रहा हो तो दौड़ना वहीं बन्द कर देना चाहिए और धीमे धीमे टहलना चाहिए जब तक कि साँस सामान्य न हो जाये। आप ६-७ मिनट में एक किलोमीटर सरलता से दौड़ सकते हैं।

दौड़ना प्रतिदिन १०० मीटर से प्रारम्भ करना चाहिए। फिर हर सप्ताह १०० मीटर बढ़ाते हुए अपनी शक्ति के अनुसार प्रतिदिन एक या दो किलोमीटर नियमित दौड़ना चाहिए। दौड़ की दूरी बढ़ाने में मनमानी नहीं करनी चाहिए। यदि किसी दिन किसी कारणवश आप दौड़ने न जा पायें तो घर पर ही ३-४ मिनट जॉगिंग कर लेनी चाहिए। किसी भी हालत में सप्ताह में ५ दिन अपनी निर्धारित दूरी तक अवश्य दौड़ लेना चाहिए।

दौड़ने के लिए पैरों में कपड़े के जूते होने चाहिए। यदि मिट्टी का ट्रैक उपलब्ध हो, तो नंगे पैर भी दौड़ा जा सकता है। लेकिन चप्पल पहनकर दौड़ना उचित नहीं है। दौड़ने की अन्य शर्तें टहलने की तरह ही हैं।

आप टहलना और दौड़ना एक साथ भी कर सकते हैं। अर्थात् पहले टहलना, फिर दौड़ना और फिर टहलना। यह पूरी तरह आपकी सुविधा और आवश्यकता पर निर्भर है।

— विजय कुमार सिंघल
फाल्गुन शु १४, सं २०७४ वि. (२८ फ़रवरी २०१८)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]