नए यथार्थ का सृजन
आज सुबह अखबार उठाते ही अखबार की प्रमुख सुर्ख़ी देखकर शिल्पा को अपने सुपुत्र यथार्थ पर गर्वमिश्रित प्यार आया. सुर्ख़ी थी-
”215 देशों का राष्ट्रगान याद कर चुका है 11 वर्षीय छात्र यथार्थ, लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम है दर्ज”
शिल्पा ने यथार्थ आवाज देकर वह सुर्ख़ी दिखाई. यथार्थ को कुछ साल पहले की बात याद आ गई.
”मैम, मैं अंदर आ सकता हूं? यथार्थ ने अपने स्कूल की म्यूजिक टीचर से पूछा.
”आओ यथार्थ, कैसे आए हो?”
”मैम जी, मुझे आपसे कुछ सीखना है.”
”बोलो, क्या सीखना है?”
”मैम मुझे अपने देश के राष्ट्रगान की धुन तो आती है, क्या आप मुझे कुछ और देशों के राष्ट्रगान की धुनें सिखा सकेंगी?”
”अवश्य, बहुत खुशी से.”
इसके बाद म्यूजिक टीचर ने यथार्थ को जापान, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों के राष्ट्रगान की प्रैक्टिस कराई और इन्हें गाना भी सिखाया. बाद में यथार्थ खुद इंटरनेट की मदद से रोज करीब एक घंटे अलग-अलग देशों के राष्ट्रगान सीखने लगे. यथार्थ हर दिन मां के पास आकर उन देशों का नाम बताता था, जो मां ने कभी सुने भी नहीं थे. वह मां से रोज अलग-अलग देशों के राष्ट्रगान की मांग करता था. मां उसे इनका प्रिंट निकालकर दे देती थी. इसी का परिणाम है कि आज उसे 215 देशों के राष्ट्रगान याद हैं.
यथार्थ ने स्वयं अपने नए यथार्थ का सृजन किया था.
लीला बहन , २१५ देशों के राष्ट्रगान याद रखना और इतनी छोटी उम्र में, चमत्कार ही कह सकते हैं .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. यथार्थ ने यह चमत्कार अपनी लगन और मेहनत के बल पर किया है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
लीला बहन , इतनी छोटी उम्र में इतना याद रखना चमत्कार ही कहेंगे .
लगन और मेहनत का संबल हो तो चमत्कार किसी भी उम्र में संभव हो सकता है.
राह संघर्ष की जो चलता है,
वो ही संसार को बदलता है,
जिसने रातों से जंग जीती,
सूर्य बनकर वही निकलता है.