मदर टरेसा आफ इंडिया : डा. सिंधुताई सपकाल
विश्व महिला दिवस पर विशेष ब्लॉग्स पढ़ते हुए डॉ. सिंधुताई सपकाल के बारे में पढ़ा. डॉ. सिंधुताई सपकाल की कठिन तपस्या और समाज सेवा के बड़े काम के बारे में जानकर मुझे लगा, कि उन्हें मदर टेरेसा ऑफ इंडिया कहा जा सकता है. उनके जीवन और समाज सेवा के बारे में कुछ लिखना चाहूंगा.
डॉ. सिंधुताई सपकाल का जीवन कठिनाइयों से भरा बिलकुल सामान्य जीवन रहा. इनका जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिम्परी मेघे गांव में 14 नवम्बर 1948 को हुआ था. उनका जन्म एक अत्यंत गरीब ग्वाले के घर में हुआ था. कन्या होने के कारण वो एक अनचाही औलाद थी इसलिए बचपन से ही उन्हें “चिन्दी” कह कर पुकारा जाता था, जिसका मतलब होता है कपड़े का एक फटा हुआ टुकड़ा. मां के न चाहने पर भी पिता पशु चराने के बहाने अपनी उस बेटी को पढ़ने के लिए स्कूल भेजते थे. गरीबी होने के कारण पिता उन्हें लिखने के लिए स्लेट नहीं दिलवा पाए तो सिन्धुताई को पेड़ के बड़े पत्ते तोड़कर उन्हें स्लेट की तरह इस्तेमाल करना पड़ता था.
इसी दौरान गांव के एक बड़े ताकतवर आदमी के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई, जो गांववालों से गोबर के उपले इकट्ठे करवाकर उन्हें अच्छे दामों में बेच दिया करता था. इस काम के लिए वह जंगल अधिकारियों की मदद लेता था महार गांववालों को कोई भी पैसा नहीं चुकाता था. जिला अधिकारी की जांच करवाने के कारण उसने किसी तरीके से सिंधुताई के पति श्रीहरि को अपनी पत्नी को घर से निकलने के लिए राजी कर दिया. श्रीहरि ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया. सिंधुताई अपनी रात घर के बाहर गौशाला में गुजारने के लिए मजबूर हो गईं. 14 अकटुबर 1973 की वो रात जब वह 9 महीने की गर्भवती थी, तो घर के बाहर बने गौशाला में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया. उसके बाद न तो मायके ने सहारा दिया, न ससुराल ने. वह भीख मांगकर गुजारा करने लगी. इसी दौरान उन्हें महसूस हुआ कि ऐसे बहुत से बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें अपने माता-पिता द्वारा ठुकराया गया है और वो सब भी यहां भीख मांगते हैं.
सिन्धुताई ने उन सब बच्चों को गोद ले लिया और उन सब का पेट भरने के लिए अब और ज्यादा भीख मांगनी शुरू कर दी. इसी बीच कुछ वर्षों बाद उन्होंने अपनी बेटी को एक बाल आश्रम में donate कर दिया और इसका कारण था कि कहीं किसी भी तरीके से अपनी बेटी की ममता के कारण गोद लिए बच्चों के साथ भेदभाव न कर बैठे. उनके जीवन को देखते हुए उनके पति 80 वर्ष की उम्र में उनसे माफी मांगते हुए वापिस उनके पास आये और साथ रहने की इच्छा जाहिर की. मगर सिन्धुताई जो अब सिर्फ हजारों बच्चों की मां थी, अपने पति को सिर्फ एक शर्त पर अपनाने के लिए तैयार हो गई कि अब वो उन्हें सिर्फ एक बच्चे के रूप में अपना सकती है. आज भी जब कोई उनके आश्रम में जाता है तो वह गर्व से कहती है कि उनका सबसे बड़ा बेटा 80 वर्ष का है. सिन्धुताई को प्यार से आज सभी बच्चे और अन्य लोग प्यार से ताई कहते हैं.
सालों के इस संघर्ष की बदौलत आज उन्होंने 1400 से ज्यादा बच्चों को अपने आश्रम में पाला और पढ़ाया है. इस बड़े से उनके परिवार में आज 207 दामाद और 37 बहुएँ और हजारों नाती-पोते पोतियां है. सभी बच्चों को अच्छी से अच्छी पढ़ाई का मौका दिया जाता है. सैकड़ों बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर वकील और बड़ी कंपनियों में कार्यरत है। इनमे से एक PhD स्कॉकर भी हैं. सिन्धुताई के आज अनेक बहुत बड़े आश्रमों में लड़कियों और लड़कों के लिए अलग अलग आश्रम हैं इनमें से एक आश्रम गायों के लिए भी हैं. उनकी बेटी और अन्य गोद लिए बच्चे आज अनेक अनाथ आश्रम शुरू कर चुके है.
2016 में DY Patil Institute Of Technology And Research ने उन्हें Doctrate की उपाधि से समानित किया है. आज वही चौथी पास एवंअनाथों की “ताई” Dr. Sindhutai Sapkal बन गई है.
सिन्धुताई के जीवन पर आधारित 2010 में “मि सिन्धुताई सपकाल” नाम की एक मराठी फ़िल्म भी बनाई गई है जिसे world premere के लिए 54वें London Film Festival में शामिल किया गया था. इस फ़िल्म ने अनेकों ही इनाम अपने नाम किए हैं. उनकी इस समाज सेवा भावना और योगदान को देखते हुए 750 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से समानित किया गया है.
विश्व महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों अनाथ बच्चों की मां डॉ सिंधुताई सपकाल को 2017 के लिए नारी शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया.
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है, कि डॉ. सिंधुताई सपकाल की कठोर तपस्या को देखकर आप भी अवश्य ही उन्हें मदर टेरेसा ऑफ इंडिया कहना चाहेंगे.
सिन्धुताई सपकाल को कोटि कोटि प्रणाम। लेख के लिए आपको बधाई।
लेकिन ताई की तुलना टेरेसा से करना उचित नहीं। ताई टेरेसा से बहुत महान् हैं। टेरेसा का एक स्वार्थ था- ईसाई बनाना, जबकि ताई का कोई स्वार्थ नहीं है।
विजय भाई , आप सही हैं . टरेसा की पर्सिधता को मुद्दे नज़र रख के देखता हूँ किः सिंधुताई को भी उतनी पर्सिधता मिलनी चाहिए , बच्चे बच्चे की जुबां पर सिंधुताई का नाम होना चाहिए क्योंकि वोह टरेसा से कहीं महान है क्योंकि जिन हालतों में सिंधुताई ने काम किया वोह टरेसा ने कभी किया नहीं . टरेसा को हम कुछ भी कहें लेकिन इसाईओं के लिए ओह बहुत कुछ है .
विश्व महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों अनाथ बच्चों की मां सिंधुताई सपकाल को 2017 के लिए नारी शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया.
लीला बहन , सिंधुताई सपकाल को यह पुरस्कार जो हमारे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने दिया, बहुत बड़ा सम्मान है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी ग़ज़ब की है. हम आपकी बात से सहमत हैं, कि चौथी पास डा. सिंधुताई सपकाल को मदर टरेसा आफ इंडिया कहा जा सकता है. अत्यंत सटीक व सार्थक सृजन के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
लीला बहन , सिंधुताई सपकाल को कोटि कोटि परणाम !