ग़ज़ल – कागजी हैं दोस्त सब बातें बनाना जानते हैं
कागजी हैं दोस्त सब बातें बनाना जानते हैं
गम मेरा सबसे बड़ा वो ये जताना जानते हैं
कहां से आ गई दुनिया जरा इसको समझिए तो
कौन किस पर किधर ताने हैं निशाना जानते हैं
आज होती हैं वहां तय शादियां जलते है शव
निकले जब श्मशान से तो मुस्कुराना जानते हैं
सब की मंजिल एक है हैं रास्ते बिल्कुल अलग
और वो बिन बात के रिश्तों की डोरी तानते हैं
सोचते हैं सच बता दें. पर नहीं मानेंगे लोग
इसलिए हम से दीवाने खाक दर दर छानते हैं
— मनोज श्रीवास्तव