जब जब बेहद तनहा हम खुद को पाते हैं
जब जब बेहद तनहा हम खुद को पाते हैं
हम तेरी यादों से अक्सर बतियाते हैं
जो फूल कभी तुमने भेजे थे उनको हम
छू कर जी लेते हैं दिल को बहलाते हैं
तेरी गलियों से मैं जब कभी गुज़रता हूँ
वो प्यार भरे मंज़र ताजा हो जाते हैं
ख़ुदगर्ज ज़माने का दस्तूर यही है जी
दौलत वालों को ही सब यार बताते हैं
युग बदला पर अपनी तकदीर नही बदली
केवल ग़म ही अपने हिस्से में आते हैं
गैरों से शिकवा क्या गैरों से शिकायत क्या
जब अपने राहों में दीवार उठाते हैं
हर सुख में हर दुख में जो थे कल तक साथी
जाने क्यूँ लोग वही दुश्मन बन जाते हैं
सतीश बंसल
१०.०३.२०१८