गीतिका/ग़ज़ल

जब जब बेहद तनहा हम खुद को पाते हैं

जब जब बेहद तनहा हम खुद को पाते हैं
हम तेरी यादों से अक्सर बतियाते हैं

जो फूल कभी तुमने भेजे थे उनको हम
छू कर जी लेते हैं दिल को बहलाते हैं

तेरी गलियों से मैं जब कभी गुज़रता हूँ
वो प्यार भरे मंज़र ताजा हो जाते हैं

ख़ुदगर्ज ज़माने का दस्तूर यही है जी
दौलत वालों को ही सब यार बताते हैं

युग बदला पर अपनी तकदीर नही बदली
केवल ग़म ही अपने हिस्से में आते हैं

गैरों से शिकवा क्या गैरों से शिकायत क्या
जब अपने राहों में दीवार उठाते हैं

हर सुख में हर दुख में जो थे कल तक साथी
जाने क्यूँ लोग वही दुश्मन बन जाते हैं

सतीश बंसल
१०.०३.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.