मैं प्रीत हूँ
मैं प्रीत हूँ
स्निग्ध प्रकृति
युवा दिलों में
धड़कती
सदियों से महकती
तरुणाई को सौन्दर्य
के रँग देती
प्रेम गीतों में
रागिनी बन घुली
स्वरलहरियाँ
बहारों में बहकती
फूलों में गमकती
फुनगियों पर
चिड़िया बन फुदकती
प्रवाहित प्रवाहिनी में
झरनों सी फूट पड़ती
अंदर से बाहर की
ओर अविरल धार
तरलतम ,सरलतम
होती जाती
नित पिघलती
भावनाएं
जीवंत रूप
आनन्दित करता
जड़ को
चेतन करता
स्पर्श प्रीत का
ज़िन्दगी में
प्राण ढालता !
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा), इंदौर